सद्भावी गुरुजन बन्धुओं ! आपके सम्बन्ध में अधिक क्या कहूँ या लिखूँ, क्योंकि आप लोग तो स्वत: ही विद्वान् जानकार एवं समझदार हैं । फिर भी एक बात और तो कह ही देना चाहूँगा कि आपकी मर्यादा एवं महत्ता भी श्रेष्ठतर इसी में है कि शिष्ट, संयमित और अनुशासित विद्यार्थी एवं समाज की रचना करें, क्योंकि शिष्ट, संयमित और अनुशासित विद्यार्थी एवं समाज ही किसी के मर्यादा एवं महत्ता को भी जान-समझ एवं व्यवहारित कर सकता है और जब वह किसी की भी मर्यादा और महत्ता जानने-समझने देने-करने लगेगा तो फिर अपने विद्यादाता गुरु की कितनी मर्यादा और महत्ता देगा--यह स्वत: ही समझने योग्य बात है।
जो अशिष्ट, असंयमित और अनुशासनहीन होगा वह किसी के मर्यादा एवं महत्ता को जानने-समझने की कोशिश ही नहीं करेगा। करना भी चाहे तो आता ही नहीं । वह तो सदा अपने ही मर्यादा एवं महत्ता के चक्कर में पड़ा रहता है । उसे तो यह कदापि समझ में नहीं आता है कि मर्यादा एवं महत्ता पाने हेतु मर्यादा एवं महत्ता देना अनिवार्य होता है क्योंकि किसी के लिये भी किसी व्यक्ति या समाज को मर्यादा दिये वगैर उस व्यक्ति या समाज से मर्यादा या महत्ता को पाना बिल्कुल ही असम्भव बात है क्योंकि जो बीज बोया जायेगा, फसल और पौध-फल भी वही होगा यानी मर्यादा स्थापित करने से ही मर्यादा मिलेगी । मर्यादा एवं महत्ता और समझ अपने आप में एक उत्तम लक्षण है और किसी उत्तम लक्षण हेतु शिष्टता एवं संयमितता और अनुशासनिकता एक अनिवार्य पहलू है ।
अत: बार-बार, अनेकानेक बार पुन: गुरुजन बन्धुओं से साग्रह निवेदन पूर्वक कहूँगा कि शिष्ट, संयमित और अनुशासित समाज के रचना का पूरा-पूरा भार एक मात्र गुरुजन बन्धुओं को ही अपने पर ही लेना और सहर्ष उसे निभाना भी चाहिये। समाज की समुचित रचना आप ही बन्धुओं से सम्भव है । यदि आप संभल जायें तो सारा समाज संभल जाय । आज समाज जो भ्रष्टता के अंतिम रूप में पहुँच गया है,उसकी जिम्मेदारी गुरुजनवृन्द एवं शासन व्यवस्था की ही है । इसे गुरुजनवृन्द एवं सरकार स्वीकार कर सत्यता पूर्वक अपने जिम्मेदारी को समझ-बूझ कर अपने कर्तव्य पालन में समुचित रूप से लग जायें तो नि:संदेह दोष रहित सत्य प्रधान मुक्ति-अमरता सहित अमन-चैन का सुख-समृध्दि से युक्त समाज स्थित स्थापित हो जाये । चारो तरफ ही खुशियाली हो ही जायेगी । प्राय: सब ही अपने आप को कृत-कृत्य ही देखने लगेंगे।
----- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस