जिससे और जिसकी दुनियां, उसी की उपेक्षा

सद्भावी सत्यान्वेषी बन्धुओं दुनियां वालों को क्या हो गया  है जिस भगवान् ने दुनियां बनाया-बनवायाजिस भगवान् ने मनुष्य हेतु सारी प्राकृतिक सम्पदायें प्रदान किये हैं जिससे कि मानव के प्रायहर आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकेजिस भगवान् ने मानव को चेतनता के साथ-साथ बौध्दिकता दी हैजो भगवान्, आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह-शिव-शक्ति के माध्यम सेदेवी-देवताओं के माध्यम से जीवों की देखभाल करता-कराता हैउस भगवान् को जाननेप्राप्त करने तथा उनके प्रति अनन्य भाव से समर्पित शरणागत होने तथा उसके भक्ति-सेवा और प्रेम के सम्बन्ध में पाठयक्रम के रूप में उसी के इस दुनियां में उसी की ही प्राप्ति-ईश्वर की प्राप्ति और अपने आप 'जीवतक की जानकारीदर्शन (तीनों की ही पृथक्-पृथक्प्राप्ति से सम्बन्धित पढ़ाई तक भी नहीं होती है । अर्थात् जनमानस में उस परमदयालु-परमकृपालुसब का पोषक और सबके संरक्षक की जानकारी तक विद्यार्थीजनों और जनमानसको नहीं दी जा पा रही है । यह कितनी बड़ी अनर्थकारी व्यवस्था है । धन्य है वह परमप्रभु कि ऐसे अनर्थकारी व्यवस्था के बावजूद भी वह इस दुनियां को स्थित रखा है ।

आत्म-शक्ति या ब्रम्ह-शक्ति अथवा शिव-शक्ति की भी नहीं:
एक यह भी बात देखें कि कितना आश्चर्य है कि ब्रम्ह-शक्ति आत्म-शक्ति शिव शक्ति के द्वारा ही मनुष्य या सभी प्राणी मात्र को ही प्राण संचालन की यानी श्वाँस-नि:श्वाँस की प्राप्ति हो रही है। उस आत्म-शक्ति रूप ब्रम्ह-शक्तिशिव शक्ति के विषय में भी कहीं भी किसी भी विद्यालय में पढ़ाई-लिखाई तक नहीं हो रही है कि आखिरकार यह श्वाँस-नि:श्वाँस रूप प्राण संचार क्या है तथा कैसे-कैसे और कहाँ से आता है और अन्ततकहाँ को चला जाता है यह आत्मा-ईश्वर-ब्रम्हशिव क्या हैकैसा है दर्शन कैसे करें आदि-आदि पढरई से बाहर कर दिया गया --क्यों आखिर ऐसा क्यों किया गया ?
यहाँ तक कि जीव-रूह-सेल्फ की भी नहीं:
कितने महान आश्चर्य की बात यह भी देखा जाय कि लाखों आदमी दुनियां में रोज जनम और मर रहे हैं फिर भी इस विषय में विद्यालयों में कोई जानकारी नहीं दी जा रही है कि यह जनम और मौत वास्तव में क्या है जो मौत किसी को भी नहीं चाहियेउस मौत से सदा-सर्वदा के लिये बचाव और सुरक्षित रखने वाला 'अमरत्तवक्या है और यह किसका होता है यदि इस जनम और मौत का सम्बन्ध जीव से है तो यह जीव क्या है कहाँ से आता है शरीर में कहाँ ठहरता है ?  मानव शरीर में किसलिये आता है और शरीर छोड़ने के पश्चात् कहाँ को चला जाता है आदि-आदि विषयों पर किसी को न तो जानने की आवश्यकता ही महसूस हो रही है और न तो इस सम्बन्धा में विद्यालयों में पढ़ाई-लिखाई ही हो रही है ।

कितनी विडम्बना पूर्ण बात संसार की है कि जिस जीव के सहारे शरीर का अस्तिव कायम हैजिस जीव से शरीर के सारे हित-नात-सम्बन्ध हैंजिस जीव के सहारे से ही घर-परिवार नौकरी-चाकरी खेती-बारी है,जिस जीव के सहारे ही दु:-सुख की सारी अनुभूतियाँ हैं और जिस जीव के सहारे ही शरीर की सारी क्रियायें-उपलब्धियाँ और भोग-उपभोग हैं और जिस जीव के वगैर शरीर का कोई और कुछ भी नहीं है,उस जीव को भी जानने-देखने-समझने की भी आवश्यकता इस दुनियां वालों को नहीं है। 

हाय रे दुनिया तेरी यह स्थिति हो गयी कि परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान एवं आत्मा-ईश्वर शिव-ज्योति और अपने अस्तित्व रूप जीव-रूह-सेल्फस्व-अहम्-हम-मैं को भी जानने-समझने देखने-परखने और अपने-आप (जीव) 'हमको भी जानने-देखने पहचानने की आवश्यकता ही नहीं !

आखिरकार ऐसा क्यों इस जीव-रूह-सेल्फ एवं आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह-शिव और परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह-खुदा-गॉड-भगवान् की जानकारी-दर्शन से सम्बन्धित विषय-वस्तुओं को पढ़ाई से ही क्यों हटा दिया गया विद्यार्थियों और समाज को इससे बंचित क्यों किया रखा गया इसे पढ़ाई में क्यों नहीं रखा गया क्या इसका जवाब कोई देने का कष्ट करेगा क्या यह वर्तमान स्कूल-कालेज वाली पढ़ाई हिरण्याक्ष-हिरण्यकश्यप आदि आदि वाला ही आसुरी समाज और आसुरी पढ़ाई जिसे प्रहलाद ने न ही पढ़ा और न ही स्वीकार किया थाही नहीं है है । बिल्कुल ही प्रहलाद वाली ही जिसे वे नहीं पढ़े थेवही पढ़ाई ही यह वर्तमान वाली है ।
----- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस

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