उपसंहार


हे भगवान् तेरी इस दुनियां को क्या हो गया है कि जो तेरा ही नाम समाप्त करने पर लगी है । कब तक ऐसा होता रहेगा कि तेरी ही दुनियां में तेरा ही अस्तित्तव मिटाया जाय । परमप्रभु हम क्या कर सकते हैं,सारी सामर्थ्य तो आपकी है । आप जानें और आप का काम जानें । हम तो आप के हैं आपके रहेंयही हमारी आप से बार-बार अनन्त बार प्रार्थना है कि हम सदा तेरे ही रहें ।  ऐसे भाव-व्यवहार से भरा-पूरा ही शिक्षा-दीक्षा पध्दति होनी चाहिये। ऐसी स्थिति में ही जीवन का पूर्णत्तव और अमरत्तव भी सहज ही उपलब्ध हो जाया करता है । जिज्ञासु को वर्तमान में भी  मुझसे उपलब्ध हो सकता है ।

शिक्षा-दीक्षा तभी पूर्ण-सम्पूर्ण मानी जायेगी जबकि क्रमशघर-परिवार-सम्पदा से युक्त संसार की;इन्द्रियों और उसके क्रियाओं-भोगों से युक्त शरीर कीअस्तित्व और क्रिया-उपलब्धियों से युक्त जीव-रूह-सेल्फ कीअस्तित्व और क्रिया-उपलब्धियों से युक्त आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह-नूर-सोल-ज्योतिर्बिन्दु रूप शिव की और मुक्ति-अमरता सहित सम्पूर्ण की सम्पूर्णतया उपलब्धि कराने वाला परमात्मा-परमेश्वरपरमब्रम्ह-खुदागॉड-भगवान् की प्राप्ति-उपलब्धि कराने की बात-चीत सहित साक्षात् दर्शन कराने वाली क्रमशजानकारियाँ--- शिक्षा (Education); स्वाध्याय (Self Realization) ; योग-साधना अथवा अध्यात्म(Spiritualization)और तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान रूप सत्यज्ञान रूप सम्पूर्णज्ञान (True Perfect Knowledge) सम्पूर्ण की उपलब्धि कराने वाली हो-- उपर्युक्त प्रकार से ही हो। पुनदोहरा दूँ कि शिक्षा-दीक्षा सम्पूर्ण की सम्पूर्णतया जानकारी कराने वाली होनी-रहनी चाहिये तभी ही दोष मुक्त सत्य प्रधान सुदृढ़-सम्पन्न अमन-चैन का भरा-पूरा समाज कायम हो-रह सकता है । यही सत्य है और इसी को ही पुर्णतव्यावहारिक बनाने होने-रहने की अनिवार्यत:आवश्यकता है। इसे हर किसी को अपनाना ही चाहिये-- अपनाना ही पड़ेगा-- पड़ेगा ही । क्या ही अच्छा होता कि सहज ही इसे सोच-समझ देख-परख कर ही सही मगर सरकार द्वारा अपना लिया जाता और समाज पर इसे प्रभावी तरीके से हर  किसी के लिए अनिवार्य कर-करा दिया जाता फिर तो यही दुनियां स्वर्ग से भी श्रेष्ठतर दिखायी देने लगती । देव वर्ग भी यहाँ आने के लिए तरसने लगते। ऐसा करने  में सरकार को परेशानी क्यों जीव-रूह-सेल्फ एवं आत्माईश्वर-ब्रम्ह-नूरसोल-स्पिरिट-ज्योर्तिमय शिव और परमात्मापरमेश्वरपरमब्रम्ह-खुदा-गॉड-भगवान् से सम्बन्धित विषय क्रमश स्वाध्याय एवं योग-साधाना-अध्यात्म और तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान को पाठयक्रम में क्यों नही रखा जा रहा है ?विद्यार्थीयों और समाज को  इन जानकारीयों और दर्शन प्राप्ति से बंचित क्यों रखा जा रहा है आखिर में ऐसा क्यों क्यों !! क्यों !!! सब भगवत् कृपा
----- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस

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